मेजर शैतान सिंह - Major Shaitan Singh



नाम

मेजर शैतान सिंह
रेजीमेंट
13वीं कुमाऊं रेजीमेंट की सी कंपनी
जन्मतिथि एवं जन्मस्थान
1 दिसंबर, 1924 को जोधपुर राजस्थान के "बंसार"
पिता का नाम
 ले. कर्नल हेमसिंह भाटी 
माता का नाम

युद्ध जिसमे परमवीर चक्र मिला
18 नवंबर को 1962 (भारत चीन युध्य में)
के बारे में
मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र दिया गया। एक दिसंबर 1924 को जोधपुर राजस्थान के बंसार गांव में ले. कर्नल हेम सिंह के घर में पैदा हुए मेजर शैतान सिंह ने एक अगस्त 1949 को कमीशन प्राप्त किया और कुमाऊं रेजीमेंट में नियुक्ति प्राप्त की।
वीरता की कहानी
चुशूल के पास रजांगला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना करने के लिए 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट की सी कंपनी मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में भेजी गई। रजांगला दर्रा 17,000 फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसे में नवंबर की सर्दी किसी भी व्यक्ति के लिए तकलीफों का सबब बन सकती है। 18 नवंबर को 1962 को सुबह 4:35 बजे चीनी सैनिकों ने अचानक हमला बोल दिया। एक तो अंधेरा, उस पर बर्फीली हवाएं, लेकिन मेजर शैतान सिंह और उनकी पलटन के जवानों ने जमकर मोर्चा संभाला। हर जवान के पास केवल 300-400 राउंड गोलियां थीं और कुल एक हजार हथगोले। हमलावर चीनी सैनिकों की संख्या 2000 से अधिक थी और उनका सामना करने के लिए मात्र 114 भारतीय सैनिक मौजूद थे। इसके बावजूद एक भी भारतीय जवान अपनी पॉजिशन से एक इंच भी पीछे नहीं हटा। दिनभर चले युद्ध के बाद चीनी सैनिक पीछे हटने लगे। गोलियों की बौछार से मेजर शैतान सिंह के पेट और जांघ में घाव कर दिए। एक हवलदार ने उन्हे तुरंत चिकित्सा के लिए नीचे चलने का आग्रह किया, किन्तु मेजर शैतान सिंह ने इनकार कर दिया। सभी 114 जवान शहीद हो गए पर उन्होंने चीनी सैनिकों को एक इंच भी आगे बढ़ने नहीं दिया। सभी शहीदों के शव तीन माह बाद बर्फ पिघलने पर प्राप्त हुए। चुशूल गांव के गड़रिए रजांगला दर्रे पर जब भेड़ चराने गए, तो उन्हे सैनिकों के शव नजर आए। जब यह खबर दिल्ली पहुंची, तो वहां से एक सैन्य टीम रेडक्रॉस की निगरानी में रजांगला दर्रे पर पहुंची। इस दल ने पाया कि अंतिम सांस लेते हुए भी भारतीय सैनिकों की अंगुलियां राइफल के ट्रिगर पर थीं। कई जवानों के हाथ में हथगोले थे। इस स्थान पर करीब 800 चीनी सैनिकों के शव प्राप्त हुए। मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
शहादत दिवस
18 नवंबर 1962