नाम
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कैप्टन
विक्रम बत्रा
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जन्मतिथि एवं
जन्मस्थान
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९ सितम्बर
१९७४ को हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव घुग्गर में
जन्मे
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रेजीमेंट
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तेरहवीं
बटालियन, जम्मू कश्मीर राइफल्स
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पिता का
नाम
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जी.एल.
बत्रा
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माता का
नाम
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कमलकांता
बत्रा
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युद्ध
जिसमे परमवीर चक्र मिला
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कारगिल
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के बारे
में
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आरंभिक जीवन पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा
के घर 9 सितंबर 1974 को
दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो
उन्होंने दोनों का नाम लव-कुश
रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल
स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया। सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से
देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा। स्कूल में
विक्रम शिक्षा के
क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृतिक
कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का
भी जज़्बा था। जमा दो तक की पढ़ाई करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में विज्ञान विषय
में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान
वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। उन्होंने
सेना में जाने का पूरा मन बना लिया और सीडीएस (सम्मिलित रक्षा सेवा) की भी तैयारी शुरू कर दी।
हालांकि विक्रम को इस
दौरान हांगकांग में भारी वेतन में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी, लेकिन
देश सेवा का सपना लिए विक्रम ने इस नौकरी को ठुकरा दिया। सेना में चयन विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में शिक्षा समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। कैप्टन के पिता जी.एल. बत्रा कहते हैं कि उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाय.के.जोशी ने विक्रम को शेर शाह उपनाम से नवाजा था। अंतिम समय मिशन लगभग पूरा हो चुका था जब कैप्टन अपने कनिष्ठ अधिकारी लेफ्टीनेंट नवीन को बचाने के लिये लपके। लड़ाई के दौरान एक विस्फोट में लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गये थे। जब कैप्टन बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे तब उनकी की छाती में गोली लगी और वे “जय माता दी” कहते हुये वीरगति को प्राप्त हुये। 16 जून को कैप्टन ने अपने जुड़वां भाई विशाल को द्रास सेक्टर से चिट्ठी में लिखा –“प्रिय कुशु, मां और पिताजी का ख्याल रखना ... यहाँ कुछ भी हो सकता है। अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को परमवीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया जो उनके पिता जी.एल. बत्रा ने प्राप्त किया। विक्रम बत्रा ने 18 वर्ष की आयु में ही अपने नेत्र दान करने का निर्णय ले लिया था। वह नेत्र बैंक के कार्ड को हमेशा अपने पास रखते थे। |
वीरता की
कहानी
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20 जून 1999 को कैप्टन बत्रा ने कारगिल की
प्वाइंट 5140 से दुश्मनों
को खदेड़ने के लिए अभियान छेड़ा और कई घंटों की गोलीबारी के बाद आखिरकार
वह अपने मिशन में कामयाब हो गए। इस जीत के बाद जब उनकी प्रतिक्रिया ली गई तो
उन्होंने जवाब दिया, 'ये दिल
मांगे मोर,' बस यहीं
से इन लाइनों को पहचान
मिल गई।
अपने
साथियों के साथ मिलकर इन्होने बहुत ही वीरता से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया, हालाँकि
इस दौरान वो काफी घायल हो गए | फिर भी उन्होंने अपने साथी कैप्टेन
अनुज नायर के साथ मिलकर ५ चोटियों पर कब्ज़ा जमाया | लेकिन ७ जुलाई १९९९ की सुबह
अपने एक साथी लेफ्टिनेंट नवीन की जान
बचाते बचाते शहीद हो गए.......
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शहादत
दिवस
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6 जुलाई, 1999
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अन्य
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1.
जेपी दत्ता की फिल्म एलओसी में बॉलीवुड एक्टर
अभिषेक बच्चन ने कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार अदा किया था।
2.
कैप्टन
विक्रम बत्रा ने देश की जमीन दुश्मन के चंगुल से वापस पाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी लेकिन अब उनका खुद का
परिवार अपनी पुश्तैनी जमीन माफिया के चंगुल से बचाने
के लिए जूझ रहा है। दुख की बात ये है कि उसके इस
संघर्ष में न तो सरकार और न ही प्रशासन का कोई सहयोग मिल रहा है।
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