शहीद दिवस
२३ मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया था; जिसकी याद में हम शहीद दिवस मनाते है| आज भी ये त्रिमूर्ति और आज़ाद युवाओं के आदर्श है| १९२८ में साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन हो रहा था जिसके अगुवा थे लाला लाजपत राय उनपर लाठी चार्ज हुआ और वे सर पर लगी चोट से बेहोश हो गए और फिर उनकी मृत्यु हो गयी| लाला लाजपत राय को लाठी से मारने वाले जनरल सेंडर्स को भगत सिंह ने ख़त्म कर दिया| जब इन्हें मारने जनरल सेंडर्स का अर्दली चानन सिंह मारने आ रहा था, तो उसे चंद्रशेखर आज़ाद ने मार गिराया| सुखदेव हर योजना को बनाने में अपना दिमाग लगाते और राजगुरु हर योजना में भगत सिंह के साथ होते| फिर ८ अप्रैल १९२९ को अंग्रेजों की मजदूर विरोधी नीति के विरोध में असेम्बली में इन्होने ऐसी जगह बम फेंका जहां कोई नहीं था; ताकि कोई मारा ना जाए| पर भागने की जगह इन्होने गिरफ्तार होना कबूल किया ताकि ये अपनी बात भारतीय जनता तक पहुंचा सके, क्योंकि उस ज़माने में कोई मीडिया नहीं था, इनके साथ बटुकेश्वर दत्त भी थे| फांसी पर जाते समय भी वे राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी पढने में तल्लीन थे|
भगत सिंह मार्क्सवादी और समाजवादी विचारों से प्रभावित थे .वे यह शेर हमेशा गुनगुनाते थे
जब से सूना है मरने का नाम ज़िन्दगी है
सर पे कफ़न लपेटे कातिल को ढूंढ़ते है|
२३ मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया था; जिसकी याद में हम शहीद दिवस मनाते है| आज भी ये त्रिमूर्ति और आज़ाद युवाओं के आदर्श है| १९२८ में साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन हो रहा था जिसके अगुवा थे लाला लाजपत राय उनपर लाठी चार्ज हुआ और वे सर पर लगी चोट से बेहोश हो गए और फिर उनकी मृत्यु हो गयी| लाला लाजपत राय को लाठी से मारने वाले जनरल सेंडर्स को भगत सिंह ने ख़त्म कर दिया| जब इन्हें मारने जनरल सेंडर्स का अर्दली चानन सिंह मारने आ रहा था, तो उसे चंद्रशेखर आज़ाद ने मार गिराया| सुखदेव हर योजना को बनाने में अपना दिमाग लगाते और राजगुरु हर योजना में भगत सिंह के साथ होते| फिर ८ अप्रैल १९२९ को अंग्रेजों की मजदूर विरोधी नीति के विरोध में असेम्बली में इन्होने ऐसी जगह बम फेंका जहां कोई नहीं था; ताकि कोई मारा ना जाए| पर भागने की जगह इन्होने गिरफ्तार होना कबूल किया ताकि ये अपनी बात भारतीय जनता तक पहुंचा सके, क्योंकि उस ज़माने में कोई मीडिया नहीं था, इनके साथ बटुकेश्वर दत्त भी थे| फांसी पर जाते समय भी वे राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी पढने में तल्लीन थे|
भगत सिंह मार्क्सवादी और समाजवादी विचारों से प्रभावित थे .वे यह शेर हमेशा गुनगुनाते थे
जब से सूना है मरने का नाम ज़िन्दगी है
सर पे कफ़न लपेटे कातिल को ढूंढ़ते है|
२३ मार्च १९३१ को तीनों को फांसी पर चढ़ा दिया गया| फांसी पर जाते समय वे तीनों गा रहे थे
दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत मेरी मिटटी से भी खुशबु ए वतन आएगी
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